भारत एक कृषि प्रधान देश है। सदियों से भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। आज हम एक ऐसे व्यवसाय की बात कर रहे हैं जिसमें सफलता की अपार संभावनाएं हैं। जिसका नाम हैं " जैविक खाद "
कृषि के लिए खाद एक महत्वपूर्ण तत्व है। आजकल रासायनिक खादों के प्रयोग से मृदा की प्राकृतिक उर्वरा शक्ति दिन प्रतिदिन कम होती जा रही हैं। आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह महसूस किया जा रहा है कि रासायनिक खादों एवं विभिन्न कृषि रासायनों जैसे कीटनाशक, फंगीनाशक एवं खरपतनाशकों के प्रयोग से मृदा, जलवायु के साथ साथ मानव शरीर पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जो मानव शरीर में किसी ना किसी रूप में जाकर विभिन्न रोगों को जन्म दे रहा है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो गया है कि इन रासायनिक खादों के विकल्प के रूप में जैविक खादों का प्रयोग किया जाए।
जैविक खाद :- जैविक खाद का अभिप्राय उन सभी कार्बनिक पदार्थों से है जो सड़ने या गलने पर जीवांश पदार्थ या कार्बनिक पदार्थ पैदा करती है। इसे हम कम्पोस्ट खाद भी कहते हैं। इनमें मुख्यतः वनस्पति सामग्री, गोबर, मलमूत्र इत्यादि होता है। जैविक खाद ग्रामीण रोजगार एवं आर्थिक सुधार का सुलभ विकल्प है।
जैविक खाद को मुख्यतः निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता हैं।
1. फास्फो कम्पोस्ट :- इस खाद में फास्फोरस की मात्रा अन्य जैविक खादों की अपेक्षा ज्यादा होती हैं। फास्फो कम्पोस्ट में फास्फोरस की मात्रा 3-7% तक होती हैं। जबकि साधारण कम्पोस्ट में 1% ही फास्फोरस की मात्रा पाई जाती है।
फास्फो कम्पोस्ट बनाने की विधि :- फास्फो कम्पोस्ट बनाने का तरीका बहुत ही सरल एवं आसान है -
* सबसे पहले 2मीटर लंबा ,1 मीटर चौड़ा और 1 मीटर गहरे 10 से 12 गड्ढे बनाले ।
* इन सभी गड्ढों में वनस्पति सामग्री, खरपतवार, कूड़ा करकट, फसलों के अवशेष, जलकुंभी, थेथर, जंगली पौधों की मुलायम पत्तीयाँ एवं गोबर को निम्न अनुपात में भर दे।
कार्बनिक कचरा 8%, गोबर 1%, मिट्टी 0.5%, और कम्पोस्ट 0.5%
* उपलब्ध सामग्री से भरे गड्ढों में 2.5 किलोग्राम प्रतिटन के हिसाब से यूरिया तथा 12.5 किलोग्राम राक फास्फेट या सिंगल सुपर फास्फेट डाले।
* गोबर, मिट्टी, राक फास्फेट एवं यूरिया को 100 लीटर पानी से भरे ड्रम में डालकर घोल तैयार करले । गड्ढों में 15-20 सेंटीमीटर मोटी अवशिष्ट सामग्री की परत बनाकर इस तैयार घोल का ऊपर से छिड़काव करें। यह प्रक्रिया गड्ढे भरने तक करें।जब तक उसकी ऊचाई जमीन की सतह से 30 से. मी. ऊंची ना हो जाए ।
* इस विधि से गड्ढों को भरकर ऊपर से बारिक मिट्टी की परत बना ले। इसके बाद अंत में गोबर से लेपकर गड्ढों को बंद कर दे। 15 वे, 30 वे और 45वे दिन के अंतराल पर इस सामग्री को पलटकर नमी बनाए रखे।
* 3 से 4 माह के उपरांत उत्तम कोटि की भुरभुरी खाद तैयार हो जाती हैं। इसकी नमी को अलग करके एक साल तक इस खाद को बोरी में पैक करके रखा जा सकता है।
* कम्पोस्ट खाद का उपयोग सभी प्रकार की फसलों में रासायनिक खाद के विकल्प के रूप में किया जा सकता हैं।
2. वर्मी कम्पोस्ट :- रासायनिक खाद के निरंतर प्रयोग से मिट्टी की बनावट एवं संरचना में काफी बदलाव आ जाता है। जिसके कारण मिट्टी काफी सख्त हो जाती है। और सारे छिद्र बंद हो जाने के कारण वर्षा का पानी जमीन के अंदर जाकर बहाव पैदा करता है। इस बहाव के कारण जमीन की उर्वरा शक्ति का ह्रास हो रहा है। अतः जमीन की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए हमारे पास जैविक खाद का प्रयोग ही एक मात्र विकल्प है।
अक्सर देखा गया है कि किसान जैविक खाद के रूप में गोबर का प्रचुर मात्रा में उपयोग करते है परंतु इसमें पौधों को मिलने वाले सभी आवश्यक पोषक तत्व मौजूद नहीं होते साथ ही इसे बनाने में ज्यादा समय लगने के साथ साथ पर्यावरण भी दूषित हो जाता हैं। पिछले कुछ वर्षों में कम्पोस्ट बनाने के लिए नई विधि विकसित हुई है जिसमें केचुओं का प्रयोग किया जाता हैं। इसे वर्मी कम्पोस्ट या केचुआ खाद भी कहते हैं।
वर्मी कम्पोस्ट क्या है :- मिट्टी में पाए जाने वाले जीवों में केचुआ सबसे प्रमुख हैं। केचुआ अपने आहार के रूप में मिट्टी तथा कच्चे जीवाश्म को निगलकर अपनी पाचन नलिका से गुजारते है जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाता है। और अपने शरीर से छोटी छोटी कास्टिंग के रूप में निकालते हैं। इसी कम्पोस्ट को वर्मी कम्पोस्ट या केचुआ खाद कहा जाता है। इस विधि द्धारा कम्पोस्ट मात्र 50-70 दिन के अंदर बनकर तैयार हो जाती है।
केचुआ खाद बनाने के लिए केचुओं की दो प्रजातिया सबसे ज्यादा उपयोगी है जिनके नाम ऐसिनिया फोटिडा ( लाल केंचुआ ) और युड्रिल युजीनी ( भूरी गुलाबी केंचुआ ) हैं।
केंचुआ खाद एक उच्च पौष्टिक तत्व वाली खाद होती है। जिसमें मुख्य रूप से नेत्रजन 1-2%, फास्फोरस 1-1.5%, तथा पोटाश 1.5-2 % के अतिरिक्त लोहा, ताँबा, मैगजीन जस्ता आदि सूक्ष्म पोषक तत्व एवं एंजाइम अधिक मात्रा में उपलब्ध रहते हैं। इसमें उपलब्ध केंचुओं के अंडों द्धारा खेतों में केंचुओं का जन्म प्रसार होता रहता है।
केंचुआ खाद बनाने की विधि :- केंचुआ खाद बनाने की विधि बहुत ही सरल व सस्ती हैं। लोग केंचुआ खाद बनाने का उधोग डाल कर स्वरोजगार करने के साथ लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकते है। औद्योगिक क्षेत्र में केंचुआ खाद तैयार करने की दो विधियां है।
1. विंडरोज 2. माड्यूलर
चूंकि माड्यूलर विधि में एक बक्से की आवश्यकता होती है। जो आम किसान के लिए बहुत ही खर्चीली होने के कारण उपयोगी नहीं है। विंडरोज विधि किफायती होने के कारण अधिक लोकप्रिय है। जिसका वर्णन निम्न है -
* पहला चरण- केंचुआ धूप सहन नहीं कर सकता जिस कारण शेड तैयार करना होता है। शेड के नीचे जमीन को समतल बनाकर इसे भिगाकर सड़ने वाला पदार्थ रखा जाता है।
* दूसरा चरण- पहली सतह को धीरे धीरे सड़ने वाले पदार्थ जैसे नारियल के छिलके, केले के पत्ते, जंगली पौधों की मुलायम पत्तियां, सडे़ गले फूल या छोटे छोटे कटे बास से तैयार किया जाता है। इस सतह की मोटाई लगभग 3 से 4 इंच होनी अनिवार्य है क्योंकि कठिन समय में केंचुआ इसे घर के रूप में इस्तेमाल करता है। इस कारण इस सतह को बेड भी कहा जाता है।
* तीसरा चरण- दूसरी सतह भी करीब 3 से 4 इंच मोटी होनी चाहिए। जो पहली सतह के ऊपर डाली जाती है। इस सतह में मुख्यतः सड़ा हुआ गोबर डाला जाता है। ताकि सड़ने के समय पदार्थ में ज्यादा गर्मी पैदा ना हो। अगर पदार्थ में नमी की कमी हो तो पानी का छिड़काव करना अनिवार्य है।
* चौथा चरण - दूसरी सतह के ऊपर हल्के केंचुओं को रखा जाता है। एक वर्ग मीटर के लिए 250 केंचुओं की आवश्यकता होती है। केंचुओं को छोडऩे के पश्चात यह बहुत जल्दी नीचे की सतह में घुस जाते हैं। क्योंकि यह खुले में रहना पसंद नहीं करते ।
* पाँचवाँ चरण - छोटे टुकड़ों में कटा हुआ या सूखा जैविक पदार्थ को गोबर में 50:50 के अनुपात में मिलाकर अंतिम सतह को रूप दिया जाता है। यह सतह 4-5 इंच तक मोटी होनी चाहिए। इस ढेर की ऊँचाई करीब 1-1.5 फुट हो जाती है।
* छटवां चरण - अंतिम सतह को जूट के कपड़ों से ढक दिया जाता है। पूरे ढेर को ढकना आवश्यक है। तथा इस पर समय समय पर पानी का छिड़काव करके नमी को 70-80% तक बनाए रखना चाहिए।
* सातवां चरण - जब केंचुआ खाद बन जाए तो उसके ऊपर गोबर की पतली परत बना दे ताकि पूरे केंचुए इस परत में आ जाए । तत्पश्चात इन केंचुओं को ऊपर की परत समेत इकट्ठा कर ले।
* आठवां चरण - ऊपर के दो स्तरों को केंचुआ खाद के रूप में इकट्ठा करके उसको सूखने देना चाहिए। बेड को सुरक्षित रखा जाता है। तथा इसी बेड के ऊपर पहले चरण से पुनः शुरुआत करते हैं।
जैविक खाद से खेती करने के लाभ :-
1. किसानों की दृष्टि से - भूमि की उपजाऊ क्षमता एवं सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती हैं।
2. मिट्टी की दृष्टि से - जैविक खाद के प्रयोग से भूमि की गुणवत्ता में सुधार होता है। भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास कम होता हैं। मिट्टी की बनावट एवं संरचना में कोई परिवर्तन नहीं होता।
3. पर्यावरण की दृष्टि से - भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है । कचरे का प्रयोग खाद बनाने में होने से प्रदूषण में कमी आती हैं। जैविक खाद के प्रयोग से मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव में कमी आती हैं।
औद्योगिक क्षेत्र में उपयोगिता :- फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में जैविक उत्पाद कि मांग बढ़ी है। अतः आप छोटी ईकाई लगाकर लोगों को रोजगार दे सकते है। साथ ही आप उध्यम रजिस्ट्रेशन, जीएसटी रजिस्ट्रेशन और ट्रेडमार्क लेकर खुद का ब्रांड बनाकर भारत के साथ साथ वैश्विक बाजार में जैविक खाद को सप्लाई कर सकते हैं।
जैविक खाद बनाने में सरकारी सहायता : - प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना या मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत ऋण लेकर आप जैविक खाद बनाने का कार्य कर सकते हैं। इसके तहत सरकार आपको 30% सब्सिडी देती है। कृषि विभाग एवं कृषि विश्वविद्यालय द्धारा जैविक खाद बनाने में आपकी सहायता की जाती है। अधिक जानकारी के लिए आप कृषि विभाग में संम्पर्क कर सकते है।
जैविक खाद बनाने में निवेश :- जैविक खाद बनाने के लिए आपको 6 से 7 लाख रुपये तक का निवेश करना होगा ।